Story is shared by Rahul Chauhan - मेरा गाँव महचाना, गुरुग्राम जिले के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर बसा एक शांत ग्रामीण अंचल है। नब्बे के दशक के शुरुआती वर्षों में मेरा जन्म यहीं हुआ। होश सँभालते ही मैंने गाँव को जल संकट की चुनौती से जूझते देखा। बड़े-बुजुर्गों की बातें सुनकर अक्सर मन विचलित हो जाता—वे कहते कि एक समय था जब यहाँ जल की कोई कमी नहीं थी। कुओं और तालाबों में पानी हमेशा लबालब भरा रहता था, जीवन हरियाली से सराबोर था। गाँव में साहबी नदी की बाढ़ आख़िरी बार सन् 1977 में आई थी, जिसकी यादें आज भी बुजुर्गों की स्मृतियों में ताज़ा हैं।
लेकिन जब हमने होश सँभाला (लगभग 1996–97 के आसपास),तब तक कुओँ का पानी पूरी तरह सूख चुका था। तालाबों में केवल बरसात का थोड़ी-बहुत मात्रा में ही पानी ठहर पाता था और भूजल खारेपन में बदल चुका था।
पेयजल के लिए गाँव में भूमिगत जल ही एकमात्र सहारा था। लेकिन भूजल के खारेपन के कारण सरकार ने पास के गाँव खंडेवला से पाइपलाइन द्वारा पेयजल आपूर्ति शुरू की। शुरुआती कुछ वर्षों तक यह व्यवस्था ठीक-ठाक चली, परंतु धीरे-धीरे हर वर्ष विशेषकर गर्मियों में पानी का संकट गहराने लगा। कई बार तो सप्लाई कई-कई दिन तक बाधित रहती और गाँव के बड़े हिस्से तक पानी पहुँच ही नहीं पाता। यह समस्या समय के साथ इतनी सामान्य हो गई मानो गाँव की नियति ही हो।
कारण भी साफ था—लगातार गिरता भूजल स्तर। जिस समय मैंने होश सँभाला (लगभग 1996–97), उस समय गाँव का पानी करीब 45–50 फीट की गहराई पर मिल जाता था। देखते-देखते 2023–25 तक यह स्तर लगभग 110–120 फीट पर पहुँच गया। पानी की गुणवत्ता भी बिगड़ती गई—खारे से और अधिक कड़वे स्वाद तक। गाँव के एक हिस्से में तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि वहाँ की ज़मीन लगभग बंजर सी हो गई और फसलें पैदा होना बंद हो गईं। उस क्षेत्र को लोग ‘खारा’ कहने लगे और यहाँ तक कहावत बन गई कि “उसका पानी तो चिड़िया तक नहीं पीती।” अनुमान है कि वहाँ के भूजल का TDS स्तर 3000+ तक पहुँच चुका होगा।
महचाना का सूखा हुआ तालाब - वर्ष 2018
अब ज़िक्र करते हैं उस नई शुरुआत का—एक ऐसी शुरुआत, जिसने परिवर्तन की राह दिखाई। और उस परिवर्तन के हर क़दम में जुड़ी है मेरे युवा साथियों और बुज़ुर्गों की अमूल्य सहभागिता और कृतज्ञता।
बात है मई 2017 की। गाँव के युवा साथियों ने सामाजिक कार्यों के लिए एक युवा क्लब बनाने का विचार रखा और इसके लिए राजकीय उच्च विद्यालय में एक बैठक बुलाई। इस बैठक में पचास से अधिक युवा साथी उपस्थित थे। सभी ने क्लब के गठन पर अपने-अपने सुझाव साझा किए। मुझे भी अपने विचार रखने का अवसर मिला। मैं पहले से कुछ तैयारियों के साथ पहुँचा था। मेरा विषय था—गाँव का वह तालाब, जो लगभग बीस वर्षों से सूखा पड़ा था, उसे फिर से जीवित करने का।
कई दिनों से मैं गिरते भूजल स्तर पर अध्ययन कर रहा था और महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों की कुछ सफलता की कहानियाँ पढ़ चुका था, जहाँ लोगों ने केवल वर्षा जल को तालाबों और कुओं में संचित करके भूजल स्तर को बेहतर बनाया था। इन उदाहरणों ने मुझे प्रेरित किया और मैंने अपने गाँव के तालाब का एक पूरा खाका तैयार किया—कैसे हम जल संरक्षण का कार्य कर सकते हैं, इसकी विस्तृत योजना कागज़ पर उतारी और साथियों के बीच साझा की।
लेकिन विचार असंभव-सा प्रतीत होने के कारण किसी ने उस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। बैठक में उस समय के पंचायत सदस्य भी मौजूद थे, मगर आर्थिक संसाधनों की कमी और कठिनाई का हवाला देकर बात को टाल दिया गया। कोई बात नहीं—उस दिन युवा क्लब तो बन गया और अगले तीन-चार वर्षों तक क्लब ने गाँव में कई सामाजिक कार्य किए—स्वच्छता अभियान, युवाओं के उत्थान हेतु गतिविधियाँ, खेलकूद और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े प्रयास। परंतु दुख की बात यह रही कि भूजल स्तर लगातार गिरता रहा और उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
युथ क्लब के गठन के लिए युवाओ की बैठक - वर्ष 2017
पर मेरे मन में हमेशा जल संरक्षण की योजना चलती रहती थी, क्योंकि मुझे यकीन था कि "जल है तो कल है"। मुझे लगता है कि भगवान का आशीर्वाद कुछ ऐसा है कि जो योजना मैं दिल से बनाता हूँ, वह किसी न किसी रूप में साकार हो जाती है। फिर एक दिन अचानक एक एनजीओ , जो तालाबों के पुनर्जीवन के कार्य में जुटा हुआ था, हमारे गाँव में आया। उन्होंने ग्रामीणों से मिलकर तालाब को फिर से जीवित करने की इच्छा जताई। उस समय हरियाणा में पंचायत भंग हो चुकी थी और चुनाव नहीं हुए थे, जिससे सरपंच के पास सीमित अधिकार थे। इसके बावजूद एनजीओ ने अपनी कागजी प्रक्रिया, सर्वेक्षण आदि शुरू कर दिया और धीरे-धीरे काम को आगे बढ़ाते रहे।
कुछ समय बाद, हरियाणा में चुनाव हुए और नई पंचायत का गठन हुआ। एनजीओ ने अपनी सारी कागजी प्रक्रिया पूरी की और काम को आगे बढ़ाया। वन स्टेज एनजीओ (पूर्व में इंडिया कैफ) ने रियो टिंटो माइनिंग कंपनी से फंड प्राप्त किया और सर शैयद ट्रस्ट की सहायता से तालाब के पुनरुद्धार का कार्य शुरू किया। बारिश और नहरी जल स्रोतों से तालाब को जोड़ने का काम किया गया। इस समग्र प्रयास में पंचायत ने अपनी जिम्मेदारी निभाई, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका गाँव के समुदाय ने निभाई। विशेष रूप से कुछ बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं ने पंचायत से भी अधिक समय और मेहनत लगाकर इस परियोजना को सफल बनाया।
तालाब पुनर्जीवन का कार्य प्रारम्भ होने का छायाचित्र
किसी भी कार्य की पूर्णता उसका अंत नहीं, बल्कि एक नई ज़िम्मेदारी की शुरुआत होती है। तालाब का निर्माण पूरा होने के बाद असली दायित्व था उसमें पानी पहुँचाने का। इस कार्य में अगर किसी का सबसे अहम योगदान रहा, तो वह मेरे युवा साथियों का है—जैसे सोनू (कुलवंत), पुष्पेंद्र, अमित चाचा, सोनू फौजी और कई अन्य। तालाब को भरने की उनकी लगन पंचायत से भी कहीं अधिक रही।
ये साथी हमेशा नहरी विभाग और पंचायत के सामने डटकर खड़े रहते कि पानी कब आएगा। चाहे रात के 10 बजे नहर पर जाना हो या सुबह के 5 बजे बाइक लेकर पहुँचना हो, चाहे कंधे से कंधा मिलाकर कस्सी चलानी हो—ये हर वक्त तैयार रहते। सरपंच या मेंबर पहुँचे न पहुँचे, ये साथी हर बार मौजूद रहे। नहरी विभाग से संपर्क बनाए रखने से लेकर तालाब में पानी लाने तक अनगिनत प्रयास उन्होंने पिछले दो वर्षों में किए।
उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि अब तक तालाब में लगभग 15 बार पानी भरा जा चुका है। कभी जो पानी पूरी तरह खारा था, आज वही मीठा हो चुका है। दो साल पहले भूजल का TDS लगभग 1300+ था, एक साल बाद यह 750 पर आ गया और हाल ही में जाँच करने पर केवल 170 पाया गया। यह किसी चमत्कार से कम नहीं।
यह कहानी है परिवर्तन की—एक ऐसे परिवर्तन की, जिसकी अभी बस शुरुआत है। हमने जितने वर्षों में पानी खोया है, अब हमें उतनी ही लगन से उसे धीरे-धीरे फिर से संचित करना होगा—अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए, अपने बच्चों के लिए। इन दो वर्षों के प्रयास ने आने वाले दो-तीन सालों के लिए गाँव में पर्याप्त पानी संचित कर दिया है।
लेकिन यह अंत नहीं है—हमें और तालाब बनाने होंगे, उन्हें वर्षा जल से जोड़ना होगा, खेतों में जल संचयन और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग करनी होगी, ताकि जो पानी हम खेती और पीने के लिए धरती से निकालते हैं, उसका कुछ अंश वापस धरती माँ को लौटाया जा सके।
नहरी जल से लबालब भरा तालाब
तालाब के पुनर्जीवन में नहरी विभाग, पंचायत और एनजीओ (वन स्टेज, रिओ टिंटो, सर शैयद ट्रस्ट )—सभी ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई। यह उनका कर्तव्य भी था और कार्यक्षेत्र भी। लेकिन इस पूरी यात्रा के सच्चे नायक मेरे युवा साथी रहे। उनके ऊपर कोई औपचारिक दायित्व नहीं था, बस समाज और आने वाली पीढ़ियों के प्रति एक नैतिक जिम्मेदारी थी। सच कहूँ तो इनके बिना यह कार्य पूरा होना संभव ही नहीं था, चाहे पंचायत या एनजीओ कितने भी प्रयास क्यों न कर लेते।
मैं अपने उन युवा साथियों और बुज़ुर्गों का सदैव कृतज्ञ रहूँगा जिन्होंने इस परिवर्तन की शुरुआत की। यह केवल उनकी मेहनत का परिणाम नहीं, बल्कि पूरे गाँव के लिए एक प्रेरणा है।
हमें समझना होगा कि पंचायतें तो आती-जाती रहेंगी, पर हम यहीं रहेंगे। यदि पानी नहीं बचा पाए, तो दोष किसी सरकार या पंचायत का नहीं होगा—बल्कि हमारी अपनी लापरवाही का होगा। इसलिए हम सबको ऐसे प्रयासों में कदम से कदम मिलाकर जुड़ना चाहिए।
तालाब का ड्रोन से लिया गया फोटो